रविवार, 18 जुलाई 2021

कोविड- 19 ने हमसे छीना पिता का साया, भयावह स्थिति से गुजर रहा हमारा प्रदेश


राजकाज न्‍यूज, भोपाल

कोविड- 19 ने पिछले दिनों हमसे हमारे पिता ( रामचन्‍द्र धनोतिया आत्‍मज् स्‍व. मन्‍नालाल जी धनोतिया उम्र 86 वर्ष ) को छीन लिया। 24 अप्रैल को अचानक ही इस महामारी का प्रवेश हमारे पिता के शरीर को माध्‍यम बना का हमारे हंसते - खेलते घर में प्रवेश कर गया। पिता का सीटी स्‍केन कराया तो उसमें किसी प्रकार का इंफेक्‍शन नही पाया गया। आरटी- पीसीआर रिपोर्ट भी निगेटिव्‍ह आई। लेकिन उनके ब्‍लड सेम्‍पल में काफी इंफेक्‍शन पाया गया। हमारे पारिवारिक चिकित्‍सक ने उसी दिन से हमें अप्रत्‍यक्ष रूप से चेता दिया था कि आप लोग अपना और परिवार का खयाल रखिये बाऊजी यानि हमारे पिता रामचन्‍द्र धनोतिया की सेवा भी करते रहें।

चिकित्‍सक का इशारा हम भी समझ गये थे। घर के सदस्‍य खासकर मैं ( राजेन्‍द्र धनोतिया ) और मेरा छोटा भाई ओमप्रकाश उनके समीप रहते है, इसलिये उनके भी कोरोना के संक्रमण से प्रभावित होने की पूरी संभावना है। हुआ भी ऐसा ही घर में एक के बाद एक लगभग सभी कम - ज्‍यादा इस महामारी की चपेट में आते गये। मेरा बेटा अजय और पत्‍नी वंदना भी इस संक्रमण की जद में आ गये। मां और बेटी को भी आंशिक असर रहा। लेकिन उन्‍हें इस महामारी के ज्‍यादा असर से बचाकर रखने में हम सफल रहे। सभी ने कोरोना से बचाव के लिए चिकित्‍सक की सलाह पर दवाएं लेना शुरू कर दी। यह सब तो चल ही रहा था और दूसरी ओर पिता की तबियत लगातार खराब होती जा रही थी। बात उन्‍हें अस्‍पताल में भर्ती कराने की हुई, लेकिन हालात इतने खराब थे कि अस्‍पताल में भर्ती कराने के नाम पर ही थर्रथर्राहट आ जाती थी। रोज ही अस्‍पतालों की स्थिति को लेकर सुनते आ रहे थे। आखिरकार हमने पिता के ऑक्‍सीजन की व्‍यवस्‍था घर में ही की और चिकित्‍सक के परामर्श पर इलाज जारी रखा। 27 अप्रैल को लगा कि पिता ठीक हो रहे है, लेेकिन यह हमारा भ्रम साबित हुआ। उनकी शारीरिक गतिविधियां लगातार घटती जा रही थी, उन्‍हें आहार और दवाएं देना भी मुश्किल होता जा रहा था।

30 अप्रैल को हालात और बिगड़े। इस बीच जब मैंने अपना सीटी स्‍केन कराया तो 1 मई को मेरी रिपोर्ट में भी संक्रमण दिखाई‍ दिया। चिकित्‍सकों ने कहा कि आपको भी अस्‍पताल जाकर अपना इलाज कराना होगा। शाम होते- होते मैंने भी अस्‍पतालों में एडमिट होने के प्रयास शुरू कर दिये, लेकिन दिक्‍कत यह थी कि कोविड- 19 प्रोटोकाल के हिसाब से मेरी आरटी- पीसीआर रिपोर्ट पॉजिटिव्‍ह होना चाहिए थी, तभी एडमिशन मिल सकता था। देर शाम तक भोपाल कमिश्‍नर के सहयोग से गांधी मेडिकल कॉलेज पहुंचा। वहां भी तात्‍कालिक जांच में रिपोर्ट निगेटिव्‍ह आई। रात्रि में गांधी मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. लोकेन्‍द्र दवे के पास पहुंचा। उन्‍होंने कुछ जांच के बाद कहा कि आपको चिकित्‍सालय में जाने की जरूरत नहीं है, दवाओं से ही कंट्रोल हो जाएगा। क्‍योंकि मेरा टेम्‍प्रेचर और ऑक्‍सीजन सेच्‍युरेशन नार्मल आ रहा था। सांस लेने में भी कोई दिक्‍कत नहीं थी। कुछ राहत मिली। रात्रि में घर आए और फिर से पिता की तिमारदारी मेें जुट गये। हमारे पारीवारिक चिकित्‍सक डॉ. योगेश मल्‍होत्रा ने भी पहले ही हमारे संक्रमण को भांप कर दवाएं शुरू कर दी थी, संभवत: इसीलिए संक्रमण आगे बढ़ने से थम गया था। 2 मई को जब हम पिता के पार्थिव शरीर को लेकर विश्राम घाट की ओर जा रहे थे, तभी आरटी- पीसीआर की रिपोर्ट पॉजिटिव्‍ह आ गयी।

इधर, 1 मई की देर रात्रि पिता की हालत ज्‍यादा खराब हो गयी। ऑक्‍सीजन लेवल यानि सेच्‍युरेशन लगातार गिरने लगा। 2 मई की सुबह साढ़े चार बजे मैंने उनकी सांसों को चलते देखा। आक्‍सीजन सेच्‍युरेशन कम ही आ रहा था। भगवान से प्रार्थना करते हुए सो गया। सुबह छोटे भाई और बेटे अजय ने देखा पिता अचेत अवस्‍था में है। मुझे उठाया। मैंने तत्‍काल चिकित्‍सक डॉ. मल्‍होत्रा को मोबाइल लगाकर स्थिति बताई। इस बीच उनकी छाती पर लगातार पंप करता रहा। लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। हमारे सिर से पिता का साया जा चुंका था। इस महामारी के कारण हालात ऐसे बने कि मेरे बड़े भाई प्रदीप धनोतिया और सबसे छोटा भाई डॉ. गोपाल धनोतिया इंदौर से भोपाल नहीं आ सके, क्‍योंकि हमारे घर के लगभग सभी सदस्‍य कोरोना संक्रमण की चपेट में आ चुके थे। उन्‍हें चिकित्‍सकों ने घर में प्रवेश एवं अंतिम संस्‍कार में भाग लेने की अनुमति नहीं दी। वैसे भी कोरोना संक्रमण के कारण पिता का पार्थिव शरीर ज्‍यादा देर तक घर में रखना ठीक नहीं था।

कुछ मित्रों को जानकारी दी। भोपाल कमिश्‍नर से अनुरोध‍ किया तो उन्‍होंने शव वाहन की व्‍यवस्‍था करवायी।  शव वाहन आ गया। लेकिन पिता के शरीर को हाथ लगाने से कर्मी ने भी मना कर दिया। मेरे बेटे ने हिम्‍मत की, कुछ मदद मैंने भी कि और पिता के पार्थिव शरीर को शव वाहन तक लेकर गया। मेरा बेटा एवं छोटा भाई ओमप्रकाश अपनी वाहन से विश्राम घाट पहुंचे। मना करने के बाद भी मेरे दो मित्र भदभदा विश्राम घाट पर पहुंचे। वहां के हालात देखकर तय किया कि इलेक्‍ट्रीक शवगृह में अंतिम संस्‍कार किया जावें। वहां की औपचारिकताएं पूरी की। मेरे बचपन का मित्र विश्राम घाट की व्‍यवस्‍थाएं संभाल रहा है, तो उसने भी सभी औपचारिकताएं पूरी करवाई। अंतिम संस्‍कार के लिए पहले से ही 2 पार्थिव देह इंतजार में थी। लगभग ढाई घंटे के इंतजार के बाद किसी तरह पिता का अंतिम संस्‍कार किया। और अस्थियों का संचय कर उसे वहीं लॉकर में सुरक्षित रख कर घर लौटे।

यह स्थिति तो मेरे घर की थी, लेकिन इन दिनों और इसके पूर्व मेरे दो पारीवारिक मित्रों और उनकी माताओं ने भी कोरोना संक्रमण की चपेट में आकर इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी मदद के लिए मैंने काफी प्रयास किये। प्रदेश नेताओं एवं अधिकारियों को मोबाइल पर उनकी मदद के लिए लगातार अनुरोध करता रहा। किसी तरह से कुछ व्‍यवस्‍थाएं भी जुटाई। शुरूआत के दिनों में तो सभी ने मदद की, लेकिन एक स्थिति यह भी बनी कि उन्‍होंने मेरा मोबाइल उठाना और मैसेज का जवाब देना बंद कर दिया। जब मुझे स्‍वयं को जरूरत पड़ी तो भी उन्‍होंने कोई जवाब नहीं दिया। उनकी अपनी समस्‍याएं है, प्रदेश के हालात बहुत खराब है। मैं, भी समझता हूं। सबकी अपनी दिक्‍कतें और परेशानियां है। यहां एक जिक्र जरूर करना चाहूंगा। हमारी राजधानी के पूर्व सांसद और मेरे अनुज तुल्‍य आलोक संजर की सेवाभाव का। उनका कोई दूसरा सानी नहीं हो सकता। मैंने उन्‍हें जब भी मदद का अनुरोध किया उन्‍होंने हर संभव मदद की। यहां तक कि जब मेरे एक वरिष्‍ठ और पारिवारिक मित्र को प्‍लाज्‍मा की जरूरत हुई तो उन्‍हाेंने अपने परिवार में संकट का समय होने के बाद भी दो बार अपने परिवार के सदस्‍यों से प्‍लाज्‍मा डोनेट करवाकर प्‍लाज्‍मा की व्‍यवस्‍था करवाई। उनके बारे में लिखना तो बहुत चाहता हूं, लेकिन इस बीच इतना ज्‍यादा घट चुका है कि अब ज्‍यादा संभव नहीं है। कई पारीवारिक मित्रों के यहां इस महामारी ने नुकसान पंहुचाया। लगभग दिनभर ही अपने आस - पास के लोगों स्‍वजनों की मौत की खबर आ रही है। भोपाल एवं इंदौर में तो हालात काफी खराब है। सरकार कह रही है स्थिति नियंत्रण में आती जा रही है। भगवान उनकी इस बयानबाजी पर मोहर लगाये ताकि मौतों का यह तांडव किसी तरह से थमे और आगे किसी स्‍वजन के संक्रमण का शिकार होने की अशुभ सूचना से बचा जा सके।

                                                                                                                                                                                             राजेन्‍द्र धनोतिया

                                                                                                                                                                                  जी-2, 186 गुलमोहर कॉलोनी, भोपाल

                                                                                                                                                                                      मोबाइल- 9425015651

बुधवार, 6 मई 2015

सलमान को मिली अंतरिम जमानत पर मच रहा बवाल

फिल्‍म अभिनेता सलमान खान को अंतरिम जमानत मिलने पर पूरे देश में बवाल मच गया हैं। कही विरोध हो रहा है, तो कुछ इसका स्‍वागत भी कर रहे हैं। वैसे सलमान का परिवार सजा के आदेश से दु:खी है। यह लाजमी भी है। पांच साल की सजा के बाद सलमान के भी आंसू टपके। सवाल यह नहीं है कि सजा के बाद अंतरिम जमानत इतनी शीघ्र क्‍यों मिल गयी। सवाल यहां यह है कि यही परिस्थितियां यदि एक सामान्‍य व्‍यक्ति के साथ होती तो क्‍या इतनी जल्‍दी अंतरिम जमानत मिलती.. क्‍या।

वैस भी इस मामले में अदालत का फैसला आने में पूरे 13 साल लग गये मुंबई की निचली अदालत को। अदालत के इस फैसले के ऐलान के साथ ही सलमान खान को हिरासत में भी ले लिया गया है. सलमान खान को हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना है, लेकिन इस दौरान जेल नहीं जाने पड़ें इसलिए सभी प्रयास किये गये और अंतरिम जमानत हासिल भी कर ली गयी। अब सीधे जेल जाने से सलमान बच भी गये। सवाल यहां फिर वहीं  है कि यही परिस्थितियां यदि एक सामान्‍य व्‍यक्ति के साथ होती तो क्‍या इतनी जल्‍दी अंतरिम जमानत मिलती.. क्‍या।

मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

यूनिसेफ ने सोशल मीडिया एवं वेबसाइटों के माध्‍यम से स्‍कूल शिक्षा सुधार का बीड़ा उठाया

23 अप्रैल को मैं पंचमढ़ी गया था, यहां यूनिसेफ की ओर से एक कार्यशाला में उपस्थित होने का मौका मिला। आरटीई लागू होने के बाद मध्‍यप्रदेश की स्‍कूली शिक्षा की स्थिति को जानने का मौका मिला। यू-डाईस की रिपोर्ट को इस कार्यशाला में रखा गया था। इस रिपोर्ट के आंकड़ों ने राज्‍य की स्‍कूल शिक्षा की हकीकत को निकट से देखने का मौका मिला। इस पर एक संक्षिप्‍त रिपोर्ट मेरे द्वारा संचालित की जा रही वेबसाइट www.rajkaaj.com पर दी गई है। इस रिपोर्ट को ब्‍लाॅगर पांचवीं मंजिल पर भी शेयर कर रहा हूं।


मध्‍यप्रदेश की स्‍कूल शिक्षा की स्थिति खास अच्‍छी नहीं है। यह कहा जाए कि शासकीय स्‍कूलों में मूलभूत सुविधाओं का जहां अभाव है, वहीं इस दिशा में शिक्षा का अधिकारी अधिनियम (आरटीई) लागू होने के पांच वर्ष बाद भी हालात अच्‍छे नहीं हैं। यूनिसेफ की मध्‍यप्रदेश इकाई ने मप्र में प्रारंभिक शिक्षा की स्थिति पर राज्‍य प्रोफाइल एकीकृत जिला शिक्षा सूचना प्रणाली (यू-डाईस) वर्ष 2013-14 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए एक कार्यशाला का आयोजन सतपुड़ा की रानी पचमढ़ी में किया। यूनिसेफ ने सोशल मीडिया एवं वेबसाइटों के बढ़ते प्रभाव को आत्‍मसात करते हुए इसके माध्‍यम से इस दिशा में काम करने का फैसला किया है। यूनिसेफ द्वारा आयोजित सोशल मीडिया एवं वेबसाइट तथा स्‍कूल शिक्षा विषय पर आयोजित कार्यशाला में चर्चा के दौरान यह निर्णय भी लिया है कि शीघ्र ही एक ऐसा फोरम बनाया जाएगा, जिसमें इन माध्‍यमों से स्‍कूल शिक्षा की खांमियों के साथ ही इस दिशा में किये जा रहे प्रयासों का प्रचार-प्रसार किया जाएगा।

कार्यशाला की ‍शुरुआत करते हएु मध्‍यप्रदेश यूनिसेफ के प्रमुख ट्रेवर क्लार्क ने कहा है कि सोशल मीडिया अब ट्रेडिशनल मीडिया की तरह लिया जा रहा है और इस मीडिया का उपयोग शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए बेहतरीन तरीके से किया जा सकता है। क्‍लार्क ने कहा कि अब बात शिक्षा के अधिकार के साथ ही सीखने के अधिकार की होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मीडिया हमेशा यूनिसेफ का सशक्‍त सहयोगी रहा है। क्‍लार्क ने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम ( आरटीई ) वर्ष 2010 बनने के बाद इस दिशा में काम हुआ है, लेकिन अभी भी इस दिशा में काफी काम हाेना बाकि है। उन्‍होंने कहा कि वेबसाइट एवं सोशल मीडिया के बढ़ते चलन का स्‍कूल शिक्षा क्षेत्र में बदलाव आया है। वाट्सएप भी इसका अच्‍छा माध्‍यम बना है। क्‍लार्क ने इन माध्‍यमों से स्‍कूल शिक्षा क्षेत्र में जोर दिया।

मप्र सूनिसेफ के शिक्षा विशेषज्ञ एफए जामी ने एमपी में शिक्षा के स्तर और जरूरी आधारभूत संरचना पर तैयार प्रेजेंटेशन में बताया कि मध्‍यप्रदेश में आरटीई लागू होने के बाद शिक्षा के हालात क्‍या हैं। जामी ने यू-डाईस की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि मप्र में 5,295 स्‍कूलों में एक भी शिक्षक नहीं हैं। इनमें सरकारी स्‍कूलों की संख्‍या 4,662 हैं। यही नहीं 17,972 शासकीय स्‍कूलों में मात्र एक शिक्षक हैं। उन्‍होंने बताया कि रीवा के स्‍कूलों में कम बच्‍चें आते है। इसी प्रकार सिंगरोली में शिक्षकों की संख्‍या काफी कम है। प्रदेश में 6 हजार 847 ऐसे स्‍कूल है, जहां छात्र-छात्राअों की संख्‍या 20 से भी कम हैं। ऐसे स्‍कूलों में सर्वाधिम रीवा के 460 स्‍कूल शामिल हैं। जामी ने बताया कि वर्ष 2013 में प्रदेश के 2012 स्‍कूलों में विद्यार्थियों की संख्‍या 10 से भी कम थी। वर्ष 2013-14 में 4 लाख 75 हजार बच्‍चों ने स्‍कूल आना छोड़ दिया। इनमें प्राथमि स्‍कूलों 4 लाख 20 हजार बच्‍चें शामिल हैं।

कम्युनिकेशन स्पेशलिस्ट, यूनिसेफ, इंडिया की मारिया फर्नांडीज ने बच्चों को उनके शिक्षा अधिकार दिलाने के लिए सो‍शल मीडिया एवं वेबसाइट की उपयोगिता बताते हुए कहा कि यूनिसेफ ने अपनी कम्‍युनिकेशन स्‍टेटजी बदली है। उन्‍होंने कहा कि इंटरनेट के माध्‍यम से वेबसाइट एवं सोशल मीडिया ने सामाजिक क्रांति ला दी है। इसी कारण अब यूनिसेफ ने भी वेबसाइट एवं सोशल मीडिया के प्‍लेटफार्म का इस्‍तेमाल करने का निर्णय लिया है। उन्‍होंने कहा कि हम 15 से 34 वर्ष के लोगों को टारगेट करना चाहते है।

वरिष्‍ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय ने 'सोशल मीडिया लैंडस्केप इन एमपी एंड हाऊ दे कैन कंट्रीब्यूट इन चिल्ड्रन्स एजुकेशन' पर अपने महत्‍ती विचार रखे। यूनिसेफ, मध्यप्रदेश के कम्युनिकेशन स्‍पेसलिस्‍ट अनिल गुलाटी ने भी सोशल मीडिया एवं वेबसाइट के बढ़ते प्रभाव पर अपनी राय रखी। कार्यशाला में भाग ले रहे पत्रकारों एवं वेबसाइट संचालन कर रहे अनेक लोगों ने शिक्षा के क्षेत्र में सोशल मीडिया एवं वेबसाइट के माध्‍यम से अपनी भूमिका निर्वहन पर विचार रखे।

मध्‍यप्रदेश सरकार ने नेपाल भूकंप पीडितों के लिए बढाए हाथ

आमतौर पर जब भी देश या विदेश कहीं भी प्राकृतिक आपदा आती है, तो हिन्‍दुस्‍तान का हर सक्षम नागरिक अपनी ओर से सहायता का हाथ बढ़ाता है। इसी तरह राज्‍य सरकारों की ओर से भी हर संभव मदद की जाती है। यह किया भी जाना चाहिए। मध्‍यप्रदेश सरकार ने भी इसी का अनुसरण किया और अपनी ओर से नेपाल के भूकंप पीडि़तों की सहायता के लिए पांच करोड़ रुपये दिये जाने की घोषणा की।

मंगलवार को शिवराज मंत्रिमण्‍डल ने पहले तो कैबिनेट की बैठक में नेपाल के भूकंप में मृतजनों के प्रति शोक संवेदना व्‍यक्‍त की ओर फिर निर्णय लिया कि म‍ंत्रिमण्‍डल के सभी सदस्‍य अपना एक माह का वेतन पीडि़तों की सहायता के लिए देंगे। मेरी मान्‍यता है कि जनप्रतिनिधि चाहे वे किसी भी स्‍तर पर कार्य कर रहे हो ऐसे वक्‍त में उन्‍हें अपनी ओर से पहल करना चाहिए, ताकि आमजन भी इस ओर प्रेरित हो सके। प्रदेश के मंत्रिमण्‍डल के सदस्‍यों के साथ ही राज्‍य के सांसदों, विधायकों, नगरीय निकायों, पंचायतों सहित अन्‍य स्‍तर पर जनता का प्रतिनिधित्‍व कर रहे अन्‍य जनप्रतिनिधियों को भी इसका अनुसरण करना चाहिए।

                                                                                                                 राजेन्‍द्र धनोतिया

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

इमली कृष्ण थे बस्तर के आदिवासियों के लिए प्रवीर कृष्ण

भारतीय प्रशासनिक सेवा में रहकर गरीब और शहरीकरण से दूर रहने वाले वनवासियों एवं आदिवासियों के लिए कुछ करने की इच्छा रखने वाले आईएएस अधिकारी ने बस्तर कलेक्टर के रूप में वन-धन योजना शुरू की थी। इसका लाभ यह हुआ था कि जो गरीब आदिवासी अपनी आजीविका के लिए ब-मुश्किल कुछ ही रुपये कमाते थे, उनकी आय 7 से 8 गुना बढ़ गई थी। विभिन्न प्रतिभाओं के धनी इस आईएएस अफसर का नाम उस वक्त इमली कृष्ण के नाम से पुकारा जाने लगा था। आज भी जब इस योजना की चर्चा होती है तो उनका नाम सहज ही जुबान पर आ जाता हैं। हम बात कर रहे हैं, 1987 बैच के आईएएस अधिकारी प्रवीर कृष्ण की। उनसे चर्चा की हमारे विशेष संवाददाता राजेन्द्र धनोतिया ने। पेश हैं

चर्चा के मुख्य अंश-
सवाल- आपको बचपन से ही संगीत का शौक रहा। किस तरह का संगीत पसंद करते हैं?

जवाब- हां, मुझे शास्त्रीय संगीत और फिल्मी संगीत दोनों ही पसंद है। इण्डियन क्लासिकल म्युजिक में पंडित भीमसेन जोशी, उस्ताद आमिर खान, पं. रविशंकर को सुनना भाता हैं। इसी तरह पुराने फिल्मी गीत और गजलें भी सुनना पसंद हैं। इसमें किशोर कुमार, लता मंगेशकर, आशा भोसले, मो. रफी, जगजीत सिंह- चित्रा सिंह, गुलाम अली और मेंहदी हसन को सुनता हूं।

सवाल- आप पंडित डीबी पुलस्कर को सुनना और उनके गाये गीतों को गुनगुनाने
का शौक भी रखते हैं?

जवाब- स्वातं-सुखाय के लिए के लिए फैमिली फंक्शन और दोस्तों के बीच भजन एवं गजलें गाता हूं। मुझे पंडित डीबी पुलस्कर के गाये भजन ‘‘ठुमक चलत रामचन्द्र बाजत पैजनिया..’’  ‘‘पायो जी मैंने रामरतन धन पायो’’ और ‘‘जिनके हिय में सिया-राम बसे’’ विशेष रूप से पसंद हैं। ये ही भजन में गाता भी हूं। मुझे जगजीत सिंह की गजले गाना भी भाता हैं। वाद्य यंत्र तबला, हारमोनियम, बासुरी और माऊथ आर्गन भी बजा लेता हूं। 

सवाल- खेलों में क्या अच्छा लगता हैं, और क्या अब इसके लिए समय निकल पाते हैंं?
जवाब- मुझे कालेज के दिनों में क्रिकेट खेलना पंसद था। तब यूनिवर्सिटी लेवल तक खेला। वैसे टेबिल-टेनिस, बैंडमिंटन भी खेलता हूं। अब जब समय मिलता है तो ये दोनों खेल खेलता हूं। मैं कालेज के दिनों में वर्ष 1984
से 1986 तक सांस्कृतिक सचिव रहने का मौका मिला था। तब मैं स्वयं भी नाटकों एवं वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लिया करता था।

सवाल- आप जब किशोर अवस्था में थे, तब एक बार बिना बताये नाव में बैठकर
चले गये थे, और वह तेज बहाव में फंस गई थी?
जवाब- हां, मैं छपरा (बिहार) का रहने वाला हूं, हम जहां रहते थे वह घर 200-250 वर्ष पुराना घर था। घर के ठीक पीछे ही सरयू नदी बहती थी। दादाजी, ने वहां एक नांव रखी हुई थी, लेकिन हमें इस बात की सख्त मनाई थी कि हम उसमें बिना नाविक के ना बैठे। एक बार सरयू तेज बहाव पर थी, हमें तैरना तो आता था। सोचा की नाव में घूम आते हैं। बिना नाविक के ही उसमें बैठ गये। अचानक नाव अनियंत्रित हो गयी। मेरी उम्र उस समय 12-14 वर्ष रही होगी। मैं और भाई दोनों घबरा गये। जोर-जोर से चिल्लाने लगे। आंधे घंटे तक तेज बहाव में बहते रहे। फिर कुछ नाव वालों ने बहाव में ही कूद कर हमें बचाया। हम तेज बहाव से घबरा गये थे, आज भी वह लम्हा याद आता हैं।

सवाल- आपको किस तरह की पुस्तकें पढ़ने का शौक हैं?
जवाब- मुझे बचपन से ही पे्रमचंद की कहानियां पढ़ने का शौक रहा। उनकी कहानियां जितनी बार पढ़ों अच्छा लगता हैं। मैं उनके भारतीय परिवेश में ग्रामीण चित्रण से काफी प्रभावित भी रहा। रवीन्द्रनाथ टैगोर, गांधीजी को भी पढ़ा। फण्डीश्वर नाथ को पढ़ना भी पसंद हैं। अंगे्रजी लेखकों में अमिताभ घोष और एटलस श्रण्ड एण्ड अ‍ेर्ट्नड को पढ़ता हूं।

सवाल- आपको लोग इमली कृष्ण कहते हैं?
जवाब- मुझे आठ वर्ष तक कलेक्टर रहने का मौका मिला। बस्तर में 4 वर्ष तक कलेक्टर रहा। ये जीवन के सबसे अहम् दिन थे। आदिवासी क्षेत्र था। जब मैं वहां कलेक्टर था, उस जिले का क्षेत्रफल 441 कि.मी. था। अबूझमाड जाने में तो 3-4 दिन लग जाते थे। जिले में वनोपज का एक हजार करोड़ का व्यवसाय होता था। लेकिन वनोपज संग्रहण करने वाले आदिवासियों को इसका लाभ कम ही मिलता था। लगभग पांच लाख आदिवासी इससे जुडेÞ हुए थे। मैंने उनके 2 हजार स्व-सहायता समूह बनवाये और उन्हें सिर्फ इमली के संग्रहण से ही 500 से 600 करोड़ का व्यवसाय करवाया। मैंने अमूल माडल को ध्यान में रखते हुए संग्रहण, वितरण एवं प्रसंस्करण की योजना बनवाई। यह कार्य जिला स्तर पर तीन वर्ष तक अच्छा चला। वन-धन योजना के अंतर्गत इस समूहों ने साड़ी, मसाले, साबुन, मंजन आदि के निर्माण का कार्य किया। वहां इन समूहों का माल ही स्थानीय बाजा में बिकता रहा। पांच लाख आदिवासियों की आय 7 से 8 गुना बढ़ गयी थी। जो इमली 50 से 60 पैसे और एक-डेढ़ रुपये में व्यापारी खरीद लेते थे, उसकी कीमत आदिवासियों को 6 से 8 रुपये तक मिलने लगी थी। मेरे इन प्रयासों को कमजोर करने की शिकायत प्रभावित लोगों ने तत्कालीन कमिश्नर आईडी खत्री को की। एक दिन कमिश्नर ने बिना बताये ग्रामीण बाजारों का निरीक्षण किया। वहां के ग्रामीणों से इमली की खरीद और बिक्री पर सवाल किये। जैसे ही लोगों को पता लगा। वहां काफी संख्या में लोग एकत्र हो
गये। कमिश्नर ने जब एक अनपढ़ वृद्ध महिला से पूछा क्या लाभ होता हैं? तो उसने जवाब दिया- ‘‘पहले अंजूरी भर मिलता था, अब बांह भर मिलता हैं ’’। धीरे-धीरे यह योजना पापुलर हुई और राज्य भर में लागू की गयी।

आईएएस प्रवीर कृष्ण की प्रोफाइल
जन्म- बिहार में 7 दिसम्बर 1961, शिक्षा- एमए अर्थशास्त्र, आईएएस में सिलेक्शन 1987, पहली पदस्थापना जून 1988 में एसिस्टेंट कलेक्टर रायपुर, सितम्बर 1989 में एसडीओ महासंमुद बने। अगस्त 1991 में डीआरडीए जबलपुर पदस्थ किये गये। वर्ष 1993 में जबलपुर के एडिशनल कलेक्टर बनाये गये। कलेक्टर सरगुजा के रूप में 6 जून 1994 को पहली पदस्थापना हुई। वर्ष 1997 में बस्तर कलेक्टर बने। यहां से जनवरी 2001 में एमडी सिविल सप्लाई कार्पोंरेशन के रूप में पदस्थ किये गये। वर्ष 2004 में संचालक आरसीवीपी
नरोन्हा अकादमी में आ गये। वर्ष 2004 में डॉयरेक्टर, केबिनेट सेक्रेटियट नई दिल्ली और फिर मई 2007 में संयुक्त सचिव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय पदस्थ किये गये। प्रवीर कृष्ण को जनवरी 2009 में स्पेशल आॅफिसर कॉमन वेल्थ गेम्स की जिम्मेदारी दी गयी। वर्ष 2012 में केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस आए और वर्तमान में प्रमुख सचिव, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के रूप में कार्यरत हैं।

सोमवार, 3 सितंबर 2012

टीचर की एक सीख ने बदल दिया जीवन का नजरिया

बचपन में सिर्फ एक बार होमवर्क नहीं करने पर टीचर ने हाथ में छड़ी मारी
थी। टीचर की उस एक बार की सजा के बाद आज तक मैंने कभी कोई कार्य विलंब से नहीं किया। चूंकि में एक किसान का बेटा हूं, इसलिए किसानों की समस्याओं  को करीब से जानता हूं। कोशिश करता हूं कि पहली ही विजिट में उसकी समस्या  का निदान कर संकू। जीवन में वैसे तो कई ऐसे वाकये है, जब मैंने किसानों  की मदद की। लेकिन हाल ही के एक वाकये ने मुझे झंझोड़ कर रख दिया था। इस बार हमने 1993 बैच के आईएएस अधिकारी एवं वर्तमान में प्रमुख राजस्व  आयुक्त हीरालाल त्रिवेदी  से चर्चा की। पेश है राजेन्द्र धनोतिया द्वारा हीरालाल त्रिवेदी से की गयी चर्चा के मुख्य अंश-

सवाल- आप ग्रामीण परिवेश में पले-बढेÞ हुए। आपके शौक क्या हैं?
जवाब- मुझे शुरू से ही मार्निग वॉक, योगा करना पंसद है। खेल में बेडमिंटन, टेबिल टेनिस मेरी पंसद है। लेकिन जब में पढ़ता था, तब एथलिटिक्स  का खिलाड़ी रहा। विश्वविद्यालय स्तर पर 10,000 मीटर की दौड़ में भाग लेता रहा। हायर सेकण्डरी में राज्य स्तरीय कबड्डी प्रतियोगिया में भी भाग लिया था। मुझे रेडियो पर पुराने फिल्मी गीत और गजले सुनना भाता है। विशेषकर मुकेश के गीत सुनता हूं। मुकेशजी द्वारा गाया गया गीत- छुप-छुप छलने में क्या राज है, यू छूप ना सकेगा परमात्मा... मेरा पसंदीदा गीत है।

सवाल- आपने उज्जैन के एक संपन्न कृषक परिवार में जन्म लिया। क्या अब भी
खेती-किसानी कर पाते हैं?

जवाब- हां, मैं मूल से किसान हूं। जब भी भोपाल से बाहर जाता हूं, तो खेतों को निहारता हूं। यह देखता हूं कि फसलों की स्थिति क्या हैं। मेरे परिवार में आज भी किसानी होती हैं। जब वहां रहता हूं तो मजदूरों के साथ
हाथ बंटाता हूं। अच्छा लगता हैं।

सवाल- स्कूली पढ़ाई के दौरान सुना है, आप अपने जूते छुपाकर जाते थे।

जवाब- मैं, ग्राम किलोली जिला उज्जैन में रहता था, वहां कक्षा-4 तक ही स्कूल था। 5 वीं से 8 वीं तक पड़ौस के गांव तक पैदल जाना पड़ता था। पांच कि.मी. दूर स्थित स्कूल में वर्षा के दौरान तेज पानी आता था तो कच्चे
रास्ते में जूते पांव से निकल जाते थे। ऐसे मौके पर कहीं भी झाड़ियों में जूते छुपाकर स्कूल जाते थे।

सवाल- आपको अपनी स्कूल की पढ़ाई का कोई ऐसा वाकया याद है, जिसने आपके जीवन
पर असर डाला हो?

जवाब- मैं, स्कूल में अपवाद स्वरूप ही अनुपस्थित रहता था। वैसे होमवर्क भी पूरा करता रहा। एक बार अंग्रेजी का होमवर्क नहीं कर पाया। यह कक्षा-6 की बात है। तब टीचर ने बतौर सजा मेरे हाथ में छड़ी मारी थी। इसके बाद जीवन में कभी ऐसा मौका नहीं आया। उस एक वाकये के कारण मैं, आज भी कोशिश करता हूं, कि समय पर कार्यालय जाऊं और समय पर ही काम निपटाऊं।

सवाल- आपके घर में अच्छी-खासी खेती थी, फिर आप इस सेवा में कैसे आए?

जवाब- जब मैं प्राइमरी क्लास में था, पिताजी संपन्न किसान थे, लेकिन उनके मित्रों में अन्य व्यवसायों के बड़े लोग शामिल थे। पिताजी की इच्छा थी कि मैं मार्डन खेती करूं या फिर ऐसी सर्विस में जाऊं जहां किसानों का भला कर संकू। कालेज की पढ़ाई के बाद माध्यमिक स्कूल में शिक्षक बन गया। इस बीच मेरे एक दोस्त का पीएस-सी के माध्यम से नायब तहसीलदार में चयन हुआ। उसने मुझे भी प्रेरित किया। मैंने 1979 में पीएस-सी की परीक्षा दी। और मेरा चयन डिप्टी कलेक्टर के रूप में हो गया।  

सवाल- सुना है, जब आप कमिश्नर शहडोल थे, तब एक किसान के पौते ने आपको
अपनी आप बीती सुनाई तो आप काफी विचलित हो गये थे?

जवाब- हां, एक दिन एक व्यक्ति रात्रि में मेरे निवास पर आया। उसने कहा कि मुझे मेरी जमीन की नकल कल सुबह तक नहीं मिली तो मेरा बयाना डूब जाएगा। मैंने उसकी बात सुनी। रात्रि में ही पटवारी को ढूंढ़वाया। उसे निर्देश दिये कि हर हाल में सुबह नकल चाहिए। पटवारी ने सुबह नकल दी। मैंने उस व्यक्ति को बुलाकर उसके हाथ में नकल दिलवाई तो वह रोने लगा था। ऐसे ही जब मैं कमिश्नर शहडोल था, राजस्व प्रकरणों की सुनवाई कर रहा था। एक आदिवासी कृषक की जमीन का मामला था। इस मामले में एसडीएम ने 1980 में निर्णय दिया था। दूसरे पक्षकार ने निगरानी कर स्थगन ले लिया था। प्रकरण 2010 में मेरे सामने आया। 30 वर्ष पुराने प्रकरण के निराकरण में काफी विलंब हो चुका था। सिर्फ पेशियां ही आगे बढ़ती जा रही थी। इस बीच मूल आदिवासी एवं उसके बेटे की मृत्यु हो चुकी थी और उसका पौता पेशी पर आ रहा था। सुनवाई के दौरान जब पौता सामने आया और उसने बताया कि मेरे पिता और उनके पिता दोनों की ही मौत हो चुकी है, आपको जो करना है, वह कर दो, मैं आगे से यहां नहीं आऊगां। यह सुन कर मुझे रोना आ गया था। (श्री त्रिवेदी जब इस संबंध में चर्चा कर रहे, तब भी उनकी आंखों में पानी आ गया) मैंने पीड़ित के कागज देखे और उसके पक्ष में फैसला सुनाया।

सवाल- आपने सेवा के दौरान कौन से प्रमुख नवाचार में भागीदारी की?

जवाब- वैसे तो मुझे शासकीय सेवा के  दौरान कई नवाचारों में भागीदारी का मौका मिला। लेकिन वर्ष 1998-99 में जिला सरकार के कंसप्ट को मूर्तरूप देने में सहभागी बना। इसी दौरान 16 नये जिले बने थे, उसमें स्टाफ की व्यवस्था, कई विभाग के संभागीय कार्यालयों कम किये गये।   इनका स्टाफ जिलों में व्यवस्थित किया। उस दौर में मैराथन काम किया। इसी प्रकार 1999-2000 में मध्यप्रदेश दो भागों मप्र एवं छग के रूप में विभाजित हुआ। तब इसके अधिनियम, नियम, परिपत्र बनाना, स्टाफ का विभाजन जैसे कार्यों की प्रारंभिक तैयारी कर गठित कमेटी तथा मुख्यमंत्री एवं मुख्य सचिव को जानकारी उपलब्ध कराने का कार्य चुनौतिपूर्ण रहा।

आईएएस हीरालाल त्रिवेदी की प्रोफाइल

जन्म- एक मार्च 1953, वर्ष 1979 में एसएएस में चयन, बालाघाट, धार एवं भोपाल में डिप्टी कलेक्टर के रूप में कार्य। त्रिवेदी भिण्ड में एडीएम भी रहे। 1993 में उप सचिव उच्च शिक्षा एवं गृह बने। दिसम्बर 1996 में  नियंत्रक वेट एण्ड मैजरमेंट पदस्थ किये गये। मई 1998 में जीएडी में उप सचिव बनाए गये। सितम्बर 2001 में सीईओ जिला पंचायत होशंगाबाद, सितम्बर  2002 में कलेक्टर शाजापुर, फरवरी 2004 में कलेक्टर मंदसौर के बाद वर्ष 2006 में सचिव राज्य निर्वाचन आयोग और जुलाई 2007 में कलेक्टर सागर बनाये गये। वर्ष 2009 में कमिश्नर सागर संभाग। अगस्त 2010 में कमिश्नर पंचायत एवं सामाजिक न्याय, सितम्बर 2011 में सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास तथा वर्तमान में प्रमुख आयुक्त राजस्व एवं नियंत्रक गर्वमेंट पे्रस के रूप में कार्यरत।

सोमवार, 27 अगस्त 2012

ग्रामीण परिवेश से लगाव सेवा में भी आ रहा काम


ग्राम, ग्रामीण और शहरी गरीब की चिंता मन में शुरू से ही रही। मुझे
ग्रामीण परिवेश में रहना और घूमना दोनों ही पंसद रहा। यही वजह रही कि
ग्रामीणों की समस्या और उनके निदान के लिए सोचता था। आज जबकि प्रशासनिक
पदों पर रहने का मौका मिल रहा है तो उनकी समस्याएं दिमाग में रहती है, और
उसके लिए सोचता हूं। 1992 बैच के आईएएस अधिकारी डॉ. रवीन्द्र पस्तौर का
जन्म मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में हुआ। एमए, एमफिल और पीएचडी (रीजनल
प्लानिंग) करने के बाद राज्य प्रशासनिक सेवा में चयन हुआ। वर्ष 1992 में
आईएएस में पदोन्नत हो गये। पस्तौर को शुरू से ही ग्रामीण क्षेत्रों या
उनसे जुड़े विभागों में काम करने का मौका मिला। यही कारण है कि उनका
ग्रामीण क्षेत्रों से लगाव शासकीय सेवा में भी काम आ रहा हैं। पेश है
एनआरएचएम के मिशन डॉयरेक्टर डॉ. पस्तौर की हमारे विशेष संवाददाता
राजेन्द्र धनोतिया से हुई चर्चा के मुख्य अंश-

सवाल- आपके प्रमुख शौक के बारे में बतायें? खेलने में क्या पंसद हैं।
जवाब- मुझे पढ़ना, घूमना और फोटोग्राफी का शौक शुरू से ही रहा। ग्रामीण
परिवेश में घूमना ज्यादा पंसद हैं। चूंकि मैं मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ का
रहने वाला हूं। और प्रदेश की जानकारी भी काफी रखता हूं। ग्रामीण
क्षेत्रों के एतिहासिक स्थलों को काफी करीब से देखा। यही नहीं ग्रामीण और
गरीब दोनों को काफी निकट से जानता हूं। खेल में मेरी रूचि शुरू से ही कम
रही। हां, जब वक्त मिलता है, तब बेडमिंटन खेलता हूं।
सवाल- पढ़ने में क्या पंसद हैं?
जवाब- देश-प्रदेश सहित अन्य देशों की एकानॉमी से जुड़ी किताबें पढ़ने का
शौक है। सेल्फ एम्पलायमेंट, आजीविका से जुडेÞ विषयों पर अच्छी किताबें
ढूढ़कर पढ़ता हूं। वर्तमान में पब्लिक हैल्थ मेनेजमेंट पढ़ रहा हूं। जब
कॉलेज में था, तब ऐतिहासिक नॉवेल, सोशल इश्यू पढ़ने में विशेष रूची थी।
वैसे मेरी रूची पब्लिक हेल्थ में अन्य प्रदेशों एवं विदशों में क्या हो
रहा यह जानने की उत्सुकता रहती है, इसलिए इससे जुडेÞ विषय पर जानकारी
एकत्र करता रहता हंू।
सवाल- आप प्रशासनिक सेवा में है, इसमें आपका लक्ष्य क्या रहता हैं?
जवाब- जब भी ग्रामीण क्षेत्रों में काम का मौका मिला। वहां के लोगों के
साथ तालमेल बैठाकर ग्रामीण एवं शहरी गरीबों की आजीविका को समुदाय से
जोड़ते हुए कैसे काम किया जाए? मेरे मन में हमेशा रहता है। फिलहाल समुदाय
आधारित सेवाओं के प्रदाय के लिए क्या किया जाए यह मेरा लक्ष्य हैं।
स्व-सहायता समूह बनाकर गतिविधि आधारित कार्य की योजना पर काम कर रहा हूं।
इसमें एक जैसे तरीके से काम करने वाले लोगों को एकत्र कर (वस्तुएं
निर्मित करने वाले और एक जैसी सेवाएं देने वाले) उनके समूह बनाना और एक
जैसी गुणवत्ता वाला प्रतिस्पर्धात्मक बाजार तैयार करने पर जोर हैं।
सवाल- जब आप कलेक्टर रहे, तब आपने नवाचार किये होंगे?
जवाब- मेरा लक्ष्य शुरू से ही समुदाय आधारित स्व-रोजगार की स्थिति
निर्मित करना रहा। जहां भी रहा वहां पहले जरूरतमंदों का समूह बनवाया। फिर
बडेÞ स्तर पर सोसायटी। ये सोसायटी मध्यप्रदेश स्वायत्त सहकारी अधिनियम के
अंतर्गत बनाई गयी। इन सोसायटियों में बीज, फल, कपड़ा उत्पादन, मुर्गी पालन
आदि कार्य शामिल रहते हैं। कंपनी एक्ट में उत्पादक कंपनी भी बनवाई। जो
विषय विशेषज्ञ संंस्थाएं थी उनसे लम्बी अवधि का अनुबंध कराया। ताकि उनके
साथ ये सोसायटियां काम कर सके।
जब कलेक्टर पन्ना था, तब स्व-रोजगार के लिए कार्य किया। ग्राम स्वराज,
ग्राम सभा को सक्रिय करने का काम किया ताकि वह ग्राम स्तर पर प्रशासनिक
क्रियान्वयन में भागीदारी कर सके। समुदाय को जोड़ने के लिए उसके प्रशिक्षण
पर हमेशा ध्यान दिया। क्योंकि इससे उनकी कार्यक्षमता विकसित हो। यही वजह
थी कि पंचायतों में काफी सक्रियता रही। मैंने वहां ग्राम स्वराज संस्थान
भी बनाया था। चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय से इसमें सहयोग लिया।
सवाल- प्रशासनिक क्षेत्र में काम करते समय वास्तविक खुशी कब मिलती हैं?
जवाब- मैंने आपको बताया कि मेरी रूचि शुरू से ही ग्राम, ग्रामीण और शहरी
गरीब की समस्या में रही। खासकर मांग आधारित बातों का निदान करने पर खुशी
मिलती हैं।
सवाल- प्रशासनिक क्षेत्र में काम करने में किस तरह का रास्ता अपनाते हैं?
जवाब- जब भी किसी नये पद पर जाता हूं, वहां की योजनाओं को समझता हूं, फिर
क्षेत्र को समझता हूं। जिन लोगों के लिए योजना बनाई गयी है, उनसे संपर्क
करता हूं। इससे योजना क्रियान्वयन में आसानी होती है, और हितग्राही को
लाभ भी मिलता हैं।

डॉ. रवीन्द्र पस्तौर की प्रोफाइल
जन्म- टीकमगढ़ में 8 मार्च 1957, आईएएस में पदोन्नति 1992, आईएएस में
पदोन्नति के बाद पहली पोस्टिंग उप सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास, वर्ष
1998 में मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत तथा एडिशनल कलेक्टर
(विकास) बने। इसके पूर्व भी भोपाल में लम्बे समय तक राज्य प्रशासनिक सेवा
में रहते हुए कलेक्ट्रट में कार्य किया। 31 दिसम्बर 1998 में मप्र स्टेट
एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड में एडिशनल डॉयरेक्टर पदस्थ किये गये। 11
जुलाई 2001 को पन्ना कलेक्टर के रूप में उनकी पदस्थापना हुई। दिसम्बर
2003 में उप सचिव मुख्यमंत्री कार्यालय के साथ ही उन्हें अतिरिक्त रूप से
प्रोजेक्ट आॅफिसर डीपीआईपी का कार्य भी सौंपा गया। जून   2004 में पस्तौर
को प्रोजेक्ट को-आर्डिनेटर डीपीआईपी और कार्यपालक निदेशक एमपी रोजगार
निर्मन बोर्ड भोपाल पदस्थ किया गया। जुलाई 2009 को रीवा कमिश्नर के पद पर
पदस्थ किये गये। यहां से उन्हें जबलपुर कमिश्नर बनाकर भेजा गया। वर्तमान
में मिशन डॉयरेक्टर एनआरएचएम भोपाल के रूप में कार्यरत।